चीन अमेरिका व्यापर युद्ध में किसने बाजी मारी ?

अमेरिकयों ने चीनी वस्तुओं की खरीददारी कम कर दी है, लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प के टेरिफ नीति को भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. इसलिए अमेरिकी उत्पादों को खरीदने के बजाय उन्होंने एशिया के ही दुसरे देशों के आपूर्तिकर्ताओं को तहरीज दी है. बताते चलें कि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच बीते एक वर्ष से व्यापार को लेकर तनातनी चल रही है जो अब भी जारी है.


बीते एक वर्ष के पहले पांच महीनों में संयुक्तराष्ट्र ने चीनी सामानों के आयत में 12 प्रतिशत की कमी की. लेकिन इसी दौरान वियतनाम से 36%, ताइवान से 23%, बांग्लादेश से 14%, तो दक्षिण कोरिया से 12 % आयत में तेजी देखी गयी.


ट्रम्प के टेरिफ के कारण सामान्य उपयोग की वस्तुएं जैसे कि बेसबाल की टोपी, हैंडबैग, मोटरसाईकिल इत्यादि जिन्हें पहले चीन से मंगाया जाता था, महंगा हो गया. ट्रम्प के नीति का असर वाशिंगमशीन, डिशवाशर, वाटर फ़िल्टर के मूल्यों पर भी देखने को मिला.

हालाँकि ट्रम्प ने पिछले सप्ताह ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के दौरान विवाद के पटरी पर आने की बात कही. वदित हो कि यह मुलाकात जापान में G 20 देशों के सम्मलेन के दौरान हुयी थी.

लेकिन इस वर्ष मई में अमेरिकी व्यपारियों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था जब ट्रम्प प्रशासन ने  $ 200 बिलियन के वस्तुओं पर यह कहते हुए 25 प्रतिशत का टेरिफ लगा दिया कि चीन पिछले समझौते से मुकर गया है. साथ ही ट्रम्प ने यह भी धमकी दी वह बचे हुए दूसरे आयातों पर भी नया टेरिफ लागू कर सकते हैं, जैसे स्मार्टफोन, खिलौने, जूते इत्यादि.

पिछले महीने CNBC को दिए साक्षात्कार में ट्रम्प ने बताया कि चीन उनकी नीति के कारण उनके बताये रास्तों पर आ सकता है क्योंकि एक तरफ चीन से कम्पनियाँ पलायन करने लगी है तो दूसरी तरफ उनका निर्यात घट गया है.


लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि ये कम्पनियाँ अपनी फक्ट्रियों को पूर्णरूप से चीन के बाहर ले जा रहीं हैं या यह सिर्फ इसलिए है कि वस्तुओं को अमेरिका में निर्यात करने से पहले कम से कम प्रिक्रियाओं से गुजारना पड़े. क्योंकि एक रिपोर्ट के अनुसार वियतनाम के कस्टम एजेंसी ने पाया कि चीन में बने सामानों पर 'मेड इन वियतनाम' चस्पा कर दिया जा रहा है, ताकि संयुक्तराष्ट्र के टेरिफ से बचा जा सके.


यह हमेशा आसन नहीं होता कि चीन के बाहर गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं का निर्माण कम लागत पर किया जा सके.या फ़िर चीन के बाहर उस स्थिति तक पहुँचने में वर्षों लग सकते हैं. बजाय इसके अमेरिका का कोई आयातक चाहेगा कि किसी तरह ट्रम्प के टेरिफ से छुटकारा मिल जाये बस. देर-सवेर ट्रम्प टेरिफ हटायें तब तक आयताक वस्तुओं के परिवहन का खर्च उपभोक्ताओं पर भी मढ सकता है.


जैसे-जैसे एशिया के दुसरे देशों से अमेरिका का आयात बढ़ना शुरू हुआ ट्रम्प चीन पर ही टेरिफ लगाते गये, पर चीन पर इसका असर कमतर ही रहा. क्योंकि चीन उन सभी शर्तों को पूरा करता है जिससे गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं का निर्माण किया जा सके, जैसे की तकनीक और सस्ती मजदूरी दर. दूसरे देशों में यह एक साथ मिलना मुश्किल होता है. जैसे कि ताइवान और दक्षिण कोरिया में उन्नत तकनीक तो है पर वह दूसरी शर्त को पूरा नहीं करता. इसी तरह बांग्लादेश और वियतनाम में मजदूरी दर भले कम हो पर तकनीक में ये देश आगे नहीं हैं.


एक दूसरा एशियाई देश जो दोनों शर्तों को एक साथ पूरा करने में सक्षम है, भारत. पर नीति निर्धारण में हुए देरी की वजह से भारत अपेक्षित फ़ायदा उठाने में नाकाम रहा है, बल्कि अमेरिका के साथ तो खुद भारत की ठण चुकि है. भारत के निर्यात में भले बढ़त मिली हो पर वो अल्पकालिक ही है, भारत मुश्किल से 2013-14 के आकड़ों को पर कर पाया. बीते दिन अमेरिका ने भारत विवाद को विश्व व्यापार परिषद् में उठाया .


चीन के साथ भारत के निर्यात में बढ़ोतरी हुयी है और इसका फायदा भी लम्बे वक्त तक उठाया जा सकेगा. ट्रेड वॉर के शुरुआती पांच महीनों में भारत का चीन के साथ निर्यात में 25% का उछाल देखने को मिला.

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