वीर सावरकर को गांधीगिरी का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए

इतिहास में ऐसे कुछेक नायक ही हुए जिनके खिलाफ़ चरित्रहनन का अभियान बड़े ही क्रूर और बर्बर तरीके से चलाया गया. एक योद्धा जिसने कई राष्ट्रवादियों और राजनीतिक नेताओं, यहाँ तक कि शुरूआती साम्यवादी नेता एम्. एन. रॉय, हिरेंद्रनाथ, डांगी आदि को भी प्रेरित किया. हालाँकि उनके बाद के भारतीय साम्यवादियों ने इस महान क्रन्तिकारी के छवि का इतना गुदामर्दन किया कि इन्हें भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का गद्दार तक कहा गया. यूँ तो सावरकर को मोहनदास करमचंद गाँधी के प्रमाणपत्र की जरुरत नहीं है, पर गाँधी ने भी वीर सावरकर को भारत का विश्वासी पुत्र, चालाक, बहादुर और फ़िर क्रन्तिकारी भी कहा.


सावरकर को लेकर मुख्य आरोप उनके अंदमान जेल में कैद रहते हुए ब्रिटिश हुकूमत को कई माफ़ीनामे लिखने को लेकर लगाया जाता है. हालांकि ऐसा आरोप को भारत में लगे आपातकाल के बाद हवा मिली. आपातकाल के बाद के दिनों में एक तरफ़ राष्ट्रवाद अपनी चमक खोता गया तो दूसरी तरफ़ नए वामपंथियों ने हिंदुत्व पर हमला करने करने के लिए सावरकर को उसका पिता बता कर अपने कोपभाजन का शिकार बनाया. इसके लिए उन्होंने गहन शोध का हवाला देते हुए बेबुनियाद खबरों के आधार पर मनगढ़ंत कहनियाँ पुरे समाज में बड़े सिद्दत के साथ फैलाई.


यह मजेदार ही है कि सवारकर के समसामयिक रहे साम्यवादियों ने उन्हें बड़े ही आदर दे देखा, जबकि वो भी हिंदुत्व के आलोचक ही थे. लेकिन एम्. एन, रॉय और हिरेंद्रनाथ के उलट, नए साम्यवादी बुद्धिजीवियों ने एक कदम आगे बढ़ते हुए, अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर अफवाहों को तथ्य में परिवर्तित करने के लिए खूब मेहनत किया.







Comments

Popular posts from this blog

तुम्हारा पति जिन्दा है..

भारत में टेलिकॉम क्रान्ति की कहानी