अपने पति पर सोनिया गाँधी की गलत बयानी





ऑगस्टा हलिकोप्टर के मामले में तो अभी बहस चल रही है पर नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया अभी जमानत पर हैं. क्या पता कुछ दिनों बाद उनका भी 'चिदम्बरम' हो जाये?


नये भारत के साथ 'दिक्कत' यह है कि हरेक हाथ फैक्ट-चेकर है इसलिए कई बार पेशेवर फैक्ट-चेकर भी प्याज छिलते ही नजर आते हैं. इसलिए आप कभी भी कुछ भी बोल कर, बिना जवाब दिए निकल सकते हैं पर जब नया भारत बोलेगा तो आप फिर बोलने लायक नहीं बचेंगें. इसके बावजूद आपके चाहने वालों की संख्या कम नहीं होगी, जो आपको स्वाभाविक घमंड की ओर धकेलेगा और फिर आप वही गलती दोबारा करेंगें जिसके लिए नये भारत ने आपको पहली बार कटघरे में किया था.

इसी नये भारत में राजीव गाँधी का 75वां जन्म दिवस मनाया गया, जहाँ ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो यह मानते हैं कि यदि राजीव गाँधी जीवित होते भारत विकास औए समृद्धि अनुपम शिखर छू गया होता. ऐसे लोगों का यह मंतव्य कम्प्यूटर क्रांति को लेकर है जबकि यह स्थापित सत्य है कि राजीव गाँधी ने उस क्रांति को अपने तक ही सीमित रखा और उनके कार्यकाल में आम लोगों को कोम्प्यूटर जैसी कोई सुविधा उपलब्द नहीं थी. बल्कि जिन लोगों ने बीते वर्षों में स्किल इण्डिया के तहत पहली बार कम्प्यूटर का माउस पकड़ा, क्या उनके पूर्वजों (पिता या दादा) ने कोम्प्यूटर देखा भी था. हमारी कई पीढियां घर से दूर बात करने के लिए चोंगा घुमाती रह गयी वो भी गाँव के धन्ना-सेठों और रसूख वालों के यहाँ ही होता था.

नये भारत में पुराने दकियानूसी खयालों के लोग भी कम नहीं हैं. कुछ कम पड़ रहे थे तो हमने समय रहते ऐसे लोगों को इटली से आयत करवा लिया. इन्हीं में से एक हैं कोंग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष जिन्होंने पिछले दिनों राजीव जी के 75वीं जन्मदिवस पर बोलते हुए उनके बारे में हर वो चीज दोहराई जो कभी उन्होंने किया ही नहीं. भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में, जिसे भारत में मोब-लिंचिंग का पिता माना जाता है, जिसके दामन पर हजारों सिख समुदाय के खून के छीटें हैं, उनके बारे में गलत बयानी करते हुए ये कहना कि उन्होंने कभी सत्ता का प्रयोग भय का माहौल कायम करने के लिए नहीं किया, ऐसा सोभा डे को भले स्वीकार्य को हों पर नये भारत में सोभा नहीं देता.


कोंग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष जो अभी दो वर्ष पहले तक लगातार 19 वर्षों तक इसके अध्यक्ष पद पर रहीं फिर भी मोह नहीं गया और वापस चली आयीं. पर चुकीं वह 1998 में कोंग्रेस अध्यक्ष बनी और राजीव गाँधी को काफ़ी पहले 1991(मरणोपरांत) में ही भारत रत्न मिल चूका था, इसलिए कोंग्रेस अध्यक्ष का इतिहास बोध थोड़ा कम है, 7 वर्षों का अंतर कम नहीं होता.

भारतीय शांति सेना को 1987 में श्रीलंका भेज कर जो पुण्य राजीव जी ने प्राप्त किया उसी का नतीजा था कि 1991 में एक बम विस्फोट में उनकी मौत हो गयी. पर उन पर गलत बयानी कर सोनिया गाँधी जी उनके आत्मा को क्यूँ विचलित करना चाहती हैं? 1986 में प्रधानमंत्री रहते हुए शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट कर उन्होंने ने किस प्रकार न्यायपालिका के दायरे को छोटा करने का प्रयास किया यह किसी से छिपा नहीं है. पर सोनिया जी कहना है कि राजीव ने संस्थाओं को मजबूत किया.


निजी सैर सपाटा के लिए आईएनएस विराट का प्रयोग करने वाले राजीव गाँधी का कारनामा यहीं नहीं रुकता. उस जमानें में जब SMS और ईमेल नहीं हुआ करते थे तो चिट्ठी-पत्री का चलन खूब था. जब प्रेम होने से लेकर आम लोगों के लिए पैसों की आवाजाही का मुख्य जरिया पोस्ट-ऑफिस हुआ करता था, तब कथित डिजिटल क्रन्तिकारी ने एक ऐसा विधेयक लाया जिसके कानून बनते ही सरकार को किसी भी पत्र को पढ़ने का अधिकार प्राप्त हो जाता. हालाँकि तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने बिल पर अपना हस्ताक्षर नहीं किया और बाद में वि पी सिंह ने इस बिल को वापस ले लिया.

भोपाल गैस त्रासदी में राजीव गाँधी की भूमिका ऐसी थी कि एक बार उन्हें पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री कहने में शर्म आ जाये. अपने दोस्त आदिल सहर्यार को बचाने के लिए उन्होंने यूनियन कार्बाइड मामले के मुख्य आरोपी को विदेश भागने दिया.

पर अब समय बदल गया है.. नये भारत में सोनिया गाँधी जमानत पर भले हो पर वो अगली एंडरसन नहीं हों सकती.. उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री पर गलतबयानी से बचना चाहिए.

क्योंकि हो सकता है कि वो कुछ दिनों बाद बयान देने लायक नहीं बचें. ऑगस्टा हलिकोप्टर के मामले में तो अभी बहस चल रही है पर नेशनल हेराल्ड मामले में वो जमानत पर हैं. क्या पता कुछ दिनों बाद उनका भी 'चिदम्बरम' हो जाये.

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