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तुम्हारा पति जिन्दा है..

वो रोज सुबह एटीएम् से आकर पैसे निकलता है. रोज सिर्फ एक सौ रूपए. हर रोज सुबह वह एटीएम् में आने वाला पहला व्यक्ति होता है. उसका हर रोज सौ रूपए निकालना कुछ अजीब सा लगने लगा. कभी पूछने की हिम्मत भी नहीं कर पाया. वर्दी में उस फौजी को सुबह-सुबह देख कर मैं ऐसे ही घबरा जाता हूँ. उसपर से यदि कुछ पूछने पर वो गुस्सा भी हो जाए क्या पता. एक दिन सुबह-सुबह कुछ आम लोग आस पास थे तो मैंने ये सोचते हुआ उसे टोका कि फौजी गुस्सा होगा तो आमलोग बचा लेंगें. ''जनाब अगर बुरा ना मानें तो क्या में जान सकता हूँ कि इतनी ठण्ड में आप रोज आकर सिर्फ़ एक सौ रूपए ही क्यूँ निकालते हो?'' मैंने डरते-डरते ही पूछा. फौजी को कुछ बोलते ना बना तो मैंने हिम्मत कर एक बार और टोका, ''साहब आप एक दिन ही बड़ी रकम क्यूँ नहीं निकाल लेते? रोज-रोज परेशान होने से तो अच्छा ही होगा.'' फौजी ने जबाव दिया, ''मेरी पत्नी का मोबाईल इस अकाउंट से कनेक्टेड है. इसलिए रोज सुबह मैं जब सौ रूपए निकालता हूँ तो मेरी पत्नी के मोबाइल पर मेसेज चला जाता है.'' इतना कह कर फौजी चुप रहा. मैंने फिर ये कहते हुए फौ

अपने पति पर सोनिया गाँधी की गलत बयानी

ऑगस्टा हलिकोप्टर के मामले में तो अभी बहस चल रही है पर नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया अभी जमानत पर हैं. क्या पता कुछ दिनों बाद उनका भी 'चिदम्बरम' हो जाये? नये भारत के साथ 'दिक्कत' यह है कि हरेक हाथ फैक्ट-चेकर है इसलिए कई बार पेशेवर फैक्ट-चेकर भी प्याज छिलते ही नजर आते हैं. इसलिए आप कभी भी कुछ भी बोल कर, बिना जवाब दिए निकल सकते हैं पर जब नया भारत बोलेगा तो आप फिर बोलने लायक नहीं बचेंगें. इसके बावजूद आपके चाहने वालों की संख्या कम नहीं होगी, जो आपको स्वाभाविक घमंड की ओर धकेलेगा और फिर आप वही गलती दोबारा करेंगें जिसके लिए नये भारत ने आपको पहली बार कटघरे में किया था. इसी नये भारत में राजीव गाँधी का 75वां जन्म दिवस मनाया गया, जहाँ ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो यह मानते हैं कि यदि राजीव गाँधी जीवित होते भारत विकास औए समृद्धि अनुपम शिखर छू गया होता. ऐसे लोगों का यह मंतव्य कम्प्यूटर क्रांति को लेकर है जबकि यह स्थापित सत्य है कि राजीव गाँधी ने उस क्रांति को अपने तक ही सीमित रखा और उनके कार्यकाल में आम लोगों को कोम्प्यूटर जैसी कोई सुविधा उपलब्द नहीं थी. बल्कि जिन लोगो

वीर सावरकर को गांधीगिरी का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए

इतिहास में ऐसे कुछेक नायक ही हुए जिनके खिलाफ़ चरित्रहनन का अभियान बड़े ही क्रूर और बर्बर तरीके से चलाया गया. एक योद्धा जिसने कई राष्ट्रवादियों और राजनीतिक नेताओं, यहाँ तक कि शुरूआती साम्यवादी नेता एम्. एन. रॉय, हिरेंद्रनाथ, डांगी आदि को भी प्रेरित किया. हालाँकि उनके बाद के भारतीय साम्यवादियों ने इस महान क्रन्तिकारी के छवि का इतना गुदामर्दन किया कि इन्हें भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का गद्दार तक कहा गया. यूँ तो सावरकर को मोहनदास करमचंद गाँधी के प्रमाणपत्र की जरुरत नहीं है, पर गाँधी ने भी वीर सावरकर को भारत का विश्वासी पुत्र, चालाक, बहादुर और फ़िर क्रन्तिकारी भी कहा. सावरकर को लेकर मुख्य आरोप उनके अंदमान जेल में कैद रहते हुए ब्रिटिश हुकूमत को कई माफ़ीनामे लिखने को लेकर लगाया जाता है. हालांकि ऐसा आरोप को भारत में लगे आपातकाल के बाद हवा मिली. आपातकाल के बाद के दिनों में एक तरफ़ राष्ट्रवाद अपनी चमक खोता गया तो दूसरी तरफ़ नए वामपंथियों ने हिंदुत्व पर हमला करने करने के लिए सावरकर को उसका पिता बता कर अपने कोपभाजन का शिकार बनाया. इसके लिए उन्होंने गहन शोध का हवाला देते हुए बेबुनियाद खबरों के आधार प

चीन अमेरिका व्यापर युद्ध में किसने बाजी मारी ?

अमेरिकयों ने चीनी वस्तुओं की खरीददारी कम कर दी है, लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प के टेरिफ नीति को भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. इसलिए अमेरिकी उत्पादों को खरीदने के बजाय उन्होंने एशिया के ही दुसरे देशों के आपूर्तिकर्ताओं को तहरीज दी है. बताते चलें कि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच बीते एक वर्ष से व्यापार को लेकर तनातनी चल रही है जो अब भी जारी है. बीते एक वर्ष के पहले पांच महीनों में संयुक्तराष्ट्र ने चीनी सामानों के आयत में 12 प्रतिशत की कमी की. लेकिन इसी दौरान वियतनाम से 36%, ताइवान से 23%, बांग्लादेश से 14%, तो दक्षिण कोरिया से 12 % आयत में तेजी देखी गयी. ट्रम्प के टेरिफ के कारण सामान्य उपयोग की वस्तुएं जैसे कि बेसबाल की टोपी, हैंडबैग, मोटरसाईकिल इत्यादि जिन्हें पहले चीन से मंगाया जाता था, महंगा हो गया. ट्रम्प के नीति का असर वाशिंगमशीन, डिशवाशर, वाटर फ़िल्टर के मूल्यों पर भी देखने को मिला. हालाँकि ट्रम्प ने पिछले सप्ताह ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के दौरान विवाद के पटरी पर आने की बात कही. वदित हो कि यह मुलाकात जापान में G 20 देशों के सम्मलेन के दौरान हुयी थी.

भारत में टेलिकॉम क्रान्ति की कहानी

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आम चुनाव 2009 के बाद कपिल सिब्बल के हवाले से एक ख़बर आई थी कि 150 से भी अधिक मीडिया पब्लिकेशन के मालिक कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे. इस ख़बर में कहा गया था कि इन मीडिया पब्लिकेशन के मदद से राहुल गाँधी को लिजेंड बनाया जा सकेगा. हाल के वर्षों में राहुल को महान बनाने प्रयास तो देखने को मिला पर उस प्रयत्न में कितनी सफ़लता मिली यह विवाद का विषय है. किसी चुनाव जीत के बाद सफ़लता का श्रेय राहुल को देना या हार के बाद मोरल विक्ट्री बताना उसी प्रयास का हिस्सा मालूम होता है. इसी तरह पिछले कुछ वर्षों में कोंग्रेस ने इन मीडिया हाउस की मदद से दूसरा मिथक खड़ा करने का प्रयास किया. इसके लिए उन्होंने संचार क्षेत्र में आये क्रांति के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और उनके सलाहकार सैम पित्रोदा को श्रेय देने की शुरुआत की. हमें प्रभावकारी तरीकों से यह बताया जाता है कि राजीव गाँधी और सैम पित्रोदा के प्रयासों के कारण ही आज भारत के सभी हाथों में मोबाईल है. गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गाँधी ने एक सभा में कहा, ''आप के पास मोबाईल फ़ोन आया क्योंकि राजीव गाँधी ने आपकी सुनी.'' उत्तर प्रदे

गर्भ निरोध पर आंबेडकर के विचार

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जनसँख्या नियंत्रण, जन्म नियंत्रण,जन्म दर नियंत्रण या गर्भ निरोध कुछ भी कह लें, ये सभी विषयों पर चर्चा  करते हुए सामान्यतः नारीवादी सिध्यांतों का हवाला दिया जाता है. नारीवादी सिध्यांत का वैश्विक इतिहास काफी गूढ़ रहा है. भारत में गर्भ निरोध का व्यापक प्रसार-प्रचार 1930 के बाद हुआ; जिसे शुरूआती सहायता इंगलैंड के कुछ संस्थाओं से मिली , और 1950 आते-आते फोर्ड फाउंडेशन और पापुलेशन कौंसिल जैसी अमेरिका की अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी इस ओर ध्यान दिया. आर्थिक और सामजिक रूप से पिछड़े परिवारों को टारगेट कर उनके बीच गर्भ निरोध के प्रोडक्ट्स बेचे गये. इस पहल में अमेरिकी नागरिक मार्गरेट संगेर का नाम सबसे आगे आता है, और भारत में रघुनाथ धोंडो कर्वे. इनलोगों ने अधिक जनसँख्या को सांस्कृतिक और आर्थिक पिछड़ेपन के रूप में परिभाषित किया और इसे नए राष्ट्रों के विकास में बाधक बताया. इस काल खंड में, भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन गति पकड़ रही थी और भारतीय राष्ट्रवाद का एक दूसरा रूप भी उभर कर सामने आने लगा था. हालाँकि 1982 में जब बंकिम चन्द्र ने आनंदमठ में 'वंदेमातरम' का नारा लगा कर इसकी शुरुआत कर दी थी, और

पूंजीवाद की दिक्कत

क्या पूंजीवाद सर्वश्रेष्ठ आर्थिक प्रणाली है? क्या लोकतंत्र इसका केंचुआ बन कर रह गया है? हाँ या नहीं जो भी हो, पर कोई भी सच्चाई इसे फैलने से रोक सका. बसरते ये कहना ठीक होगा कि पूंजीवाद ही वो आर्थिक प्रणाली है जो सम्पूर्ण पृथ्वी की सच्चाई है. इतना ही नहीं किस देश को चक्र बखूबी चले इसके लिए यह सबसे जरुरी है की वो अपने नीतियों के हरेक आयामों में पूंजीवाद को असीमित जगह दे. इतिहास बाजारवाद की सफलता के कहानितों से भरा पड़ा है. फिर वो चीन के ग्रेट लिप फॉरवर्ड से लेकर डेंग जिओपिंग के सुधार और उदारवाद की कहानी हो, जो मानव इतिहास में गरीबी के विरुद्ध सबसे बड़ी जित साबित हुई. पूंजीवाद को अपनाकर एक ओर जहाँ पूर्वी जर्मनी और दक्षिण कोरिया समृद्ध बन जाता है तो उनके जुड़वाँ भाई कमशः पूर्वी जर्मनी और उत्तर कोरिया के साथ ठीक उल्टा हुआ. हालाँकि बाद में जर्मनी के एकत्रीकरण के साथ यह अंतर मिटता गया. पर फिर चिली के आर्थिक तरक्की और वेनुजुएला के विफलता को तो नजरंदाज नहीं  कर सकते.